Chhath puja : नमस्कार दोस्तों , स्वागत है आपका अपना हिंदी ब्लॉग TEphd.com में | आज मैं इस आर्टिकल के माध्यम से बात करूँगा छठ पर्व के बारे में | छठ पर्व हिन्दुओ का सबसे बड़ा आस्था का पर्व हैं | कहते हैं दुनियाँ उगते सूरज को हमेशा पहले सलाम करती हैं, लेकिन बिहार के लोगो के लिए ऐसा नहीं हैं।
बिहार के लोकआस्था से जुड़े पर्व “छठ” का पहला अर्घ्य डूबते हुए सूरज को दिया जाता हैं। यह ना केवल बिहारियों की खासियत हैं बल्कि इस पर्व की परंपरा भी की लोग झुके हुए को पहले सलाम करते हैं, और उठे हुए को बाद में। लोक आस्था का कुछ ऐसा ही महापर्व हैं “छठ”
तो आइये इस आर्टिकल ( Chhath puja in Hindi | छठ पर्व :आस्था का महापर्व ) के माध्यम से छठ पर्व के बारे में विस्तार से जानते है जिसे नीचे बताया गया हैं |
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Chhath puja in Hindi | छठ पर्व :आस्था का महापर्व
मैया हैं छठ फिर क्यों होती हैं सूर्य की पूजा – दीपावली के ठीक छः दिन बाद षष्ठी तिथि को होने के कारण इसे छठ पर्व कहते हैं। व्याकरण के अनुसार छठ शब्द स्त्रीलिंग हैं इस वजह से इसे भी इसे छठी मैया कहते हैं। वैसे किवदंती अनके हैं कुछ लोग इन्हें भगवान् सूर्य की बहन मानते हैं तो कुछ लोग इन्हें भगवान् सूर्य की माँ, खैर जो भी आस्था का ये पर्व हमारे रोम रोम में बसा होता हैं। छठ का नाम सुनते ही हमारा रोम-रोम पुलकित हो जाता हैं और हम गाँव की याद में डूब जाते हैं। ( Chhath puja )
दुनिया का सबसे कठिन वर्त – चार दिनों यह व्रत दुनिया का सबसे कठिन त्योहारों में से एक हैं, पवित्रता की इतनी मिशाल की व्रती अपने हाथ से ही सारा काम करती हैं। नहाय-खाय से लेकर सुबह के अर्घ्य तक व्रती पुरे निष्ठा का पालन करती हैं। भगवान् भास्कर को 36 घंटो का निर्जल व्रत स्त्रियों के लिए जहाँ उनके सुहाग और बेटे की रक्षा करता हैं।
History of Chhath puja in Hindi | छठ पर्व का इतिहास
छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा विधि विधान से की जाती है। छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ, सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई, इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है।
सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियवंद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। आइए जानते हैं कि सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास और कथाएं क्या हैं। ( Chhath puja )
1. राजा प्रियवंद ने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए की थी छठ पूजा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था।
राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्याग लगे।उसी वक्त ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो।
माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ। ( Chhath puja )
2. श्रीराम और सीता ने की थी सूर्य उपासना ( Chhath puja )
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी। ( Chhath puja )
3. द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था छठ व्रत ( Chhath puja )
पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़कर देखा जाता है। द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था। Chhath puja
4. दानवीर कर्ण ने शुरू की सूर्य पूजा ( Chhath puja )
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। Chhath puja
छठ महापर्व की शुरुआत कैसे हुई ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया।
मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। ( Chhath puja )
इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ?
सूर्य देवता को अर्घ्य देने के साथ ही आस्था के महापर्व छठ पूजा का समापन हो गया, चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरूआत नहाय खाय से होती है और समापन ऊषा अर्घ्य के साथ होता है। Chhath puja
चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार के दौरान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाएगी। छठ मैया देवी उषा हैं जिन्हें वैदिक काल से सूर्य की पत्नी माना जाता रहा है। यह त्योहार बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों और नेपाल में भी बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है।
अन्य हिंदू त्योहारों की तुलना में छठ पूजा को काफी कठिन माना जाता है। इन दिनों कई अनुष्ठान किए जाते है। भक्त इकट्ठा होकर नदियों, तालाबों और जल निकायों में पवित्र डुबकी लगाते हैं। वे चार दिन तक सख्त उपवास भी रखते हैं। ( Chhath puja )
यह पर्व चार दिनों तक चलता है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह पर्व आरम्भ होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है।
अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं।
अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं। अंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं।
चार दिवसीय छठ पर्व का उत्सव का स्वरूप
भगवान सूर्य की उपासना का यह छठ पर्व, भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहते हैं यह त्योहार वैदिक युग से मनाया जाता है। धीरे-धीरे छठ प्रवासी भारतीयों के साथ- साथ विश्वभर प्रसिद्ध हो गया है। ( Chhath puja )
छठ व्रत की कथा के अनुसार ‘जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तभी उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।लोक-परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृ का षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।
छठ पूजा दरअसल चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे निर्जल यानी पानी भी ग्रहण नहीं करते।
नहाय खाय ( Chhath puja )
छठ पूजा का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र बनाया जाता है। इसके पश्चात छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं।
घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।
खरना और लोहंडा ( Chhath puja)
छठ मैया के इस लोकपर्व के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है।
प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
संध्या अर्घ्य ( Chhath puja )
छठ व्रत के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, इनके अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य (डूबते सूर्य) को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठ व्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं।
सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।
प्रातः अर्ध्य ( Chhath puja )
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदित होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।
छठ पर्व : लोक आस्था का पर्व
भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहारों में से एक छठ पूजा है जो कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी को मनाया जाता है। सूर्य भगवान की बहन को छठी मैया के रूप में पूजा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर कोई पूरे विधि विधान से छठी मैया की पूजा करता है तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती है इसीलिए सभी लोग माता की पूरी श्रद्धा पूर्वक पूजा करते है और पूरे हर्षोल्लास से इस त्योहार को मनाते है। Chhath puja
भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहारों में से एक छठ पूजा है जो कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी को मनाया जाता है। सूर्य भगवान की बहन को छठी मैया के रूप में पूजा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर कोई पूरे विधि विधान से छठी मैया की पूजा करता है तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती है इसीलिए सभी लोग माता की पूरी श्रद्धा पूर्वक पूजा करते है और पूरे हर्षोल्लास से इस त्योहार को मनाते है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है, यह व्रत पति की लंबी आयु, संतान की प्राप्ति और घर में सुख शांति के लिए किया जाता है जिससे इस त्योहार का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
यह त्यौहार चार दिनों तक चलता है इसलिए सभी आस-पड़ोस के लोग और अन्य अतिथि भी घर पर आते है एक दूसरे से मेलजोल बढ़ाते हैं जिससे समाज में सद्भावना और भाईचारे की भावना उत्पन्न होती है।
यह त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास व धूमधाम से मनाया जाता है जिसके कारण चारों ओर खुशियां ही खुशियां दिखाई देते है। Chhath puja
इससे भारत की अनुपम और भव्य संस्कृति देखने को मिलती है जो यह बताती है कि भारत की संस्कृति में त्योहारों का कितना अधिक महत्व है।
छठ पूजा मनाने का कारण
पौराणिक कथा के अनुसार एक राजा के कई वर्षों तक संतान नहीं हुई तो राजा ने महर्षि ऋषि को अपनी पीड़ा बताई ऋषि ने यज्ञ करने को कहा यज्ञ करने के फलस्वरुप राजा को संतान तो प्राप्त हुई लेकिन वह बच्चा मृत पैदा हुआ।
जिसके बाद राजा अपना आपा खो बैठा और अपनी जान देने को उतारू हो गया उसी वक्त छठी मैया ने राजा को दर्शन दिए और कहा कि अगर आप लोग मेरा व्रत पूर्ण विधि-विधान से करते है तो आपको अवश्य संतान प्राप्ति होगी। Chhath puja
छठी मैया के व्रत करने की फलस्वरुप राजा को संतान की प्राप्ति हुई जिसके बाद से ही सभी लोग अपने पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए छठी मैया का व्रत रखते है।
छठ पर्व : पौराणिक और लोक कथाएँ
छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।
रामायण से ( Chhath puja )
एक पौराणिक लोककथा के अनुसार लंका विजय के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत से ( Chhath puja )
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्घा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्घति प्रचलित है।
पुराणों से ( Chhath puja )
पुराण के अनुसार छठी मैय्या प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी हैं और भगवान सूर्य की बहन हैं। सुहागिन महिलाओं को संतान का सुख और संतान को दीर्ध आयु तथा सौभाग्य प्रदान करती हैं। शिशु जन्म के छठे दिन इन्हीं छठी मैय्या का पूजन होता है। इनके प्रताप से ही संतान सुख और समृद्धि प्राप्त करती हैं।
भारत के अधिकाधिक पर्वों की एक विशेषता यह भी है कि वो किसी न किसी पौराणिक मान्यता से प्रभावित होते हैं। छठ के विषय में भी ऐसा ही है। इसके विषय में पौराणिक मान्यताएं तो ऐसी हैं कि अब से काफी पहले रामायण अथवा महाभारत काल में ही छठ पूजा का आरम्भ हो चुका था। कोई कहता है कि सीता ने, तो कोई कहता है कि द्रोपदी ने सर्वप्रथम यह छठ व्रत और पूजा की थी।
अब जो भी हो, पर इतना अवश्य है कि अगर आपको भारतीय श्रृंगार, परम्परा, शालीनता, सद्भाव और आस्था समेत सांस्कृतिक समन्वय की छटा एकसाथ देखनी हो तो अर्घ्य के दिन किसी छठ घाट पर चले जाइए। आप वो देखेंगे जो आपके मन को प्रफुल्लित कर देगा।
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